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Uttar Pradesh

दूसरे समुदाय के लोगों ने Person को दी सजा, शख्स की चीखें सुनकर पसीजा उनका दिल

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साकरस नामक गांव में कुछ लोगों ने एक Person को बांधकर चोट पहुंचाई, क्योंकि वह खेत से कुछ सब्जियां ले गया था। उसने उन्हें ऐसा करने से मना किया, लेकिन वे नहीं माने और उसे पीटते रहे। किसी ने इस घटना का वीडियो बनाकर ऑनलाइन शेयर कर दिया। यह घटना दो समूहों के बीच हुई।

एक गांव के व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के खेत से बिना अनुमति के सब्जियां ले लीं। खेत मालिक के दोस्त नाराज हो गए और उन्होंने सब्जी लेने वाले व्यक्ति को बांध दिया। जब उसने उन्हें ऐसा करने से मना किया, तब भी उन्होंने उसे बुरी तरह से पीटा। खेत मालिक के दोस्त पुलिस के पास गए और कहा कि जिस व्यक्ति ने उस व्यक्ति को चोट पहुंचाई है, उसे सजा दी जाए। जिस व्यक्ति को चोट लगी थी, वह भी पुलिस के पास गया और कहा कि उस पर हमला किया गया है। उसे बांधने वाले लोगों ने भी कहा कि उसने उनसे चोरी की है।

एक व्यक्ति खेत से सब्जियां चुराते हुए पकड़ा गया और कुछ लोगों ने उसकी पिटाई कर दी। उसने घटना की सूचना पुलिस को दी, जो अब मामले की जांच कर रही है। उसे पीटने वाले लोगों ने भी पुलिस को चोरी की सूचना दी। पुलिस अपनी जांच के आधार पर कार्रवाई करेगी।

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वाराणसी कोर्ट से Akhilesh Yadav और असदुद्दीन ओवैसी को मिली बड़ी राहत, ज्ञानवापी मामले में हुई थी याचका दर्ज़

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Akhilesh Yadav और असदुद्दीन ओवैसी जैसे दो महत्वपूर्ण नेताओं को वाराणसी की एक अदालत से अच्छी खबर मिली। अदालत ने फैसला सुनाया कि ज्ञानवापी नामक स्थान पर पाए गए शिवलिंग नामक एक विशेष पत्थर के बारे में उन्होंने जो कुछ कहा, वह न तो मतलबी था और न ही आहत करने वाला। इसलिए, अदालत ने कहा कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया और इस बारे में शिकायत स्वीकार नहीं की। पिछली अदालत ने भी यही बात कही थी।

हरिशंकर पांडे नामक व्यक्ति ने अदालत से अखिलेश यादव और ओवैसी जैसे कुछ नेताओं की जांच करने का अनुरोध किया, क्योंकि उन्हें लगा कि उन्होंने ज्ञानवापी नामक स्थान पर पाए गए शिवलिंग नामक एक विशेष पत्थर के बारे में घटिया बातें कही हैं। वह चाहते थे कि अदालत कहे कि उन नेताओं ने नफरत भरी बातें करके कुछ गलत किया है। इस पर विनोद कुमार नामक न्यायाधीश ने गौर किया, लेकिन अंत में न्यायाधीश ने हरिशंकर के अनुरोध पर कोई कार्रवाई नहीं करने का फैसला किया।

हरिशंकर पांडे नाम का एक व्यक्ति किसी चीज़ के लिए मदद मांगने के लिए एक न्यायाधीश के पास गया, लेकिन न्यायाधीश ने 14 फरवरी, 2023 को मना कर दिया। फिर, हरिशंकर ने न्यायाधीश से इस बारे में फिर से सोचने के लिए कहा, लेकिन न्यायाधीश ने फैसला किया कि वह ऐसा भी नहीं कर सकता।

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तेज रफ्तार रोडवेज बस ने पीआरवी Police वाहन को जोरदार मारी टक्कर, एक की हुई मौत

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कल रात महोबा पर एक तेज रफ्तार बस ने पुलिस की गाड़ी को टक्कर मार दी। दुखद बात यह है कि कार में सवार एक Police अधिकारी की मौत हो गई, जबकि दो अन्य बुरी तरह घायल हो गए। बस ने Police की गाड़ी को टक्कर मारने के बाद, एक पैदल यात्री को भी कुचल दिया, जिसकी बाद में अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। जब पुलिस को इस दुर्घटना के बारे में पता चला, तो वे तुरंत मदद के लिए पहुंचे। उन्होंने घायल Police अधिकारियों को उनकी कार से बाहर निकालने के लिए कड़ी मेहनत की और उन्हें एम्बुलेंस में अस्पताल पहुंचाया।

एक बहुत ही भयानक कार दुर्घटना हुई क्योंकि एक बस बहुत तेज गति से जा रही थी। बस पुलिस की गाड़ी से टकरा गई। पुलिस की गाड़ी को हेड कांस्टेबल अब्दुल हक नाम का व्यक्ति चला रहा था, जो दो अन्य पुलिस अधिकारियों, हेड कांस्टेबल बेचन लाल और कांस्टेबल सुभाष चंद्र के साथ आपातकालीन ड्यूटी पर काम कर रहा था। वे लोगों की मदद करने के लिए जा रहे थे, तभी महोबा की ओर से आ रही बस ने चंद्रावल रोड पर उनकी पुलिस की गाड़ी को पीछे से टक्कर मार दी।

दुर्घटना के बाद, बस चालक तेजी से भाग गया। आस-पास के लोगों का कहना है कि जब बस परमानंद तिराहा नामक स्थान पर पहुंची, तो उसने एक पैदल यात्री को टक्कर मार दी और उसे चोट लगी और खून बह रहा था। दुर्घटना के बाद चालक ने बस को गैरेज में खड़ा कर दिया और भाग गया। जब पुलिस को पता चला कि उनकी गाड़ी बस से टकरा गई है, तो कई अधिकारी और स्थानीय लोग मदद के लिए आए। उन्होंने घायल पुलिस अधिकारियों को बचाने के लिए कड़ी मेहनत की, जो अपनी गाड़ी के अंदर फंसे हुए थे और खून से लथपथ थे।

आपातकालीन चिकित्सक डॉ. रोहित सोनकर ने बताया कि सुभाष चंद्र नामक एक पुलिस अधिकारी की मौत हो गई है। एक अन्य व्यक्ति, जो एक अजनबी था, भी मदद लेने के दौरान मर गया। दो अन्य पुलिस अधिकारी अब्दुल हक और बेचन लाल अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। जब पुलिस को सुभाष की मौत के बारे में पता चला, तो उनके वरिष्ठ अधिकारी तुरंत मौके पर पहुंचे। दोनों शव अब शवगृह नामक एक विशेष स्थान पर हैं और सुभाष के परिवार को बताया गया है कि क्या हुआ था।

पुलिस अभी भी यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि अजनबी कौन था। एक दुर्घटना हुई जिसमें एक कार जिसके बारे में कोई नहीं जानता था, पुलिस की गाड़ी से टकरा गई। कुछ लोग घायल हो गए और उन्हें अस्पताल जाना पड़ा, लेकिन दुख की बात है कि एक पुलिस अधिकारी बच नहीं पाया। उन्हें पता चल गया कि वह कौन सी कार थी, और अब वे इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या हुआ था, तथा यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि उचित कार्रवाई की जाए।

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Supreme Court ने ‘बुलडोजर कार्रवाई’ पर लगाई रोक, मायावती बोलीं- ‘विध्वंस कानून के राज का प्रतीक नहीं’

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Supreme Court ने कहा है कि लोग बिना अनुमति के इमारतों को गिराने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल नहीं कर सकते। उन्होंने यह नियम इसलिए बनाया क्योंकि कुछ लोग इस बात से चिंतित थे। कोर्ट के इस फैसले का मतलब है कि 1 अक्टूबर तक देश में कहीं भी बिना अनुमति के इमारतों को नहीं गिराया जा सकता, जब तक कि वे सार्वजनिक सड़कों, ट्रेनों या जल क्षेत्रों के रास्ते में न हों।

मायावती ने भी इस फैसले के बारे में अपने विचार साझा किए हैं। मायावती ने कहा कि इमारतों को गिराने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल करना कानून का पालन करने का सही तरीका नहीं है और यह थोड़ा डरावना है कि ऐसा कितनी बार हो रहा है। उनका मानना ​​है कि जब लोग इससे सहमत नहीं होते हैं, तो सरकार को स्पष्ट नियम बनाकर मदद करनी चाहिए जिसका देश में हर कोई पालन कर सके, लेकिन उन्होंने अभी तक ऐसा नहीं किया है। बसपा के नेता कह रहे हैं कि जब सरकार इमारतों को गिराने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल करती है, तो सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय, केंद्र सरकार को अपना काम करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर कोई संविधान में लिखे नियमों और कानूनों का पालन करे। केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि वे यह काम सही तरीक़े से कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने एक वकील से कहा कि उन्हें बुलडोज़र को हीरो की तरह पेश नहीं करना चाहिए। वकील ने कहा कि कुछ लोग बुलडोज़र को बहुत महत्वपूर्ण दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर बुलडोज़र को किसी मंदिर, गुरुद्वारे या मस्जिद को गिराना है जो सड़क या ट्रेन की पटरी के रास्ते में है, तो यह ठीक है। लेकिन किसी अन्य कारण से, वे इससे सहमत नहीं होंगे।

सॉलिसिटर जनरल (एसजी) इस फ़ैसले से सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा कि पिछले तीन महीनों में अलग-अलग जगहों पर चेतावनी दी गई थी, और वे देश में हर किसी को इस नियम का पालन करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। तब, जस्टिस गवई ने जवाब दिया कि वे संविधान के एक विशेष भाग के कारण यह फ़ैसला कर रहे हैं। उन्होंने एसजी से पूछा कि वे दो हफ़्ते के लिए इस पर रोक क्यों नहीं लगा सकते।

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