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Uttar Pradesh

Milkipur उपचुनाव: सियासी जंग का बिगुल बजा, बीजेपी और सपा आमने-सामने

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उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हुए उपचुनाव में परचम लहराने के बाद अब अयोध्या की Milkipur विधानसभा सीट पर उपचुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं। सूत्रों के अनुसार, चुनाव आयोग मंगलवार को Milkipur उपचुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है। इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच कड़ी टक्कर होने की उम्मीद है।

अयोध्या की हार के बाद बढ़ा दांव
अयोध्या की फैजाबाद लोकसभा सीट पर हार का सामना करने के बाद यह उपचुनाव बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। सभी की नजरें मिल्कीपुर की इस चुनावी जंग पर टिकी हैं। सपा ने पहले ही अपने उम्मीदवार का ऐलान कर दिया है। पार्टी ने यहां से सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को मैदान में उतारा है। वहीं, बीजेपी ने अभी तक अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं की है, लेकिन अंदरखाने तैयारियां जोरों पर हैं।

सीएम योगी ने दी 6 मंत्रियों को अहम जिम्मेदारी
चुनाव से पहले बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इस सीट को जीतने की रणनीति बना रहे हैं। उन्होंने 6 मंत्रियों को विशेष जिम्मेदारी सौंपी है, जिनमें प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:

प्रभारी मंत्री सूर्य प्रताप शाही

जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह

सहकारिता राज्य मंत्री जेपीएस राठौर

आयुष एवं औषधि प्रशासन राज्य मंत्री डॉ. दयाशंकर सिंह दयालु

राज्य मंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह

राज्य मंत्री सतीश शर्मा

इसके साथ ही, दोनों उपमुख्यमंत्री, केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक, भी इस सीट पर बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी ताकत लगाएंगे।

कोर्ट केस के कारण टला था चुनाव
मिल्कीपुर सीट पर पहले उपचुनाव कोर्ट में मामला लंबित होने के कारण टाल दिया गया था। यह याचिका बीजेपी के पूर्व विधायक गुरु गोरखनाथ ने डाली थी, जिसे हाल ही में वापस ले लिया गया। इसके बाद उपचुनाव का रास्ता साफ हो गया।

सियासी पिच पर बड़ा मुकाबला
बीजेपी के लिए यह सीट अब नाक का सवाल बन गई है। वहीं, समाजवादी पार्टी इस मौके को बीजेपी को चुनौती देने के लिए भुनाने की पूरी कोशिश कर रही है। उपचुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद दोनों दलों के बीच सियासी घमासान और तेज होने की संभावना है।

मिल्कीपुर की यह चुनावी जंग अयोध्या और आसपास के क्षेत्रों में राजनीतिक समीकरणों को नया मोड़ दे सकती है। अब देखना यह है कि रणनीति और जनसंपर्क के इस खेल में किसका पलड़ा भारी रहता है।

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