Uttar Pradesh
Uttar Pradesh में छात्र संघ चुनाव पर चर्चा तेज, CM योगी का बड़ा बयान
देश और प्रदेश के विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव को राजनीति की नर्सरी माना जाता है। कई बड़े नेता, जैसे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा, पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह और चंद्रशेखर, इसी नर्सरी से राजनीति में आए। लेकिन Uttar Pradesh में 2007 से छात्र संघ चुनावों पर रोक लगी हुई है।
छात्र संघ चुनाव पर प्रतिबंध: कारण और पृष्ठभूमि
2007 में बसपा सरकार ने लखनऊ विश्वविद्यालय और अन्य संस्थानों में बढ़ती हिंसा का हवाला देकर छात्र संघ चुनावों पर रोक लगा दी। इससे पहले, 2005 में लखनऊ विश्वविद्यालय में आखिरी बार चुनाव हुए थे। लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें लागू होने के बाद छात्रों और प्रशासन के बीच टकराव बढ़ गया था।
इस दौरान विरोध-प्रदर्शन के बीच एक छात्र नेता की हत्या हो गई थी, जिसके चलते छात्रों में भारी आक्रोश था। 2007 में मुख्यमंत्री मायावती ने चुनावों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया।
चुनाव बहाल करने की कोशिशें और कानूनी लड़ाई
2012 में छात्रों के लंबे संघर्ष के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय ने चुनाव कराने की घोषणा की। लेकिन आयु सीमा को लेकर विवाद के कारण मामला हाईकोर्ट पहुंच गया। कोर्ट ने 15 अक्टूबर 2012 के चुनावों पर रोक लगा दी।
करीब सात साल चली कानूनी प्रक्रिया के बाद 2019 में याचिका खारिज कर दी गई। इसके बाद चुनाव कराने का रास्ता साफ हुआ, लेकिन अब तक सरकार ने कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी नहीं किए।
CM योगी का बड़ा बयान: छात्र संघ या युवा संसद?
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 136वें दीक्षांत समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने छात्र संघ चुनाव पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि “राजनीति में पढ़े-लिखे युवाओं का आना जरूरी है।”
चुनाव की समय-सीमा तय की जाए:
प्रवेश प्रक्रिया पूरी करने के बाद 15-25 अगस्त के बीच चुनाव कराए जा सकते हैं।
युवा संसद का गठन हो:
छात्र संघ की जगह युवा संसद मॉडल अपनाने पर विचार किया जाए।
चुनाव लड़ने के लिए उम्र और अवधि तय हो:
प्रथम वर्ष के छात्रों को चुनाव लड़ने से रोका जाए। केवल उच्च कक्षाओं के छात्र ही प्रतिनिधित्व के लिए पात्र हों।
डिबेट और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा:
छात्रों को एकत्र कर वाद-विवाद (डिबेट) कराई जाए ताकि योग्य प्रतिनिधियों का चयन हो।
छात्रों के लिए संदेश
सीएम योगी ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय का उद्देश्य ज्ञान अर्जन और शोध है, न कि केवल राजनीति करना। उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे पढ़ाई पर ध्यान दें और सही समय पर नेतृत्व के लिए खुद को तैयार करें।
आगे की राह
छात्र संघ चुनावों की बहाली को लेकर मुख्यमंत्री का यह बयान एक नई उम्मीद जगा रहा है। छात्र और समाज दोनों इसे सकारात्मक दृष्टि से देख रहे हैं। अब देखना होगा कि सरकार कब और कैसे इन सुझावों को अमल में लाती है।
Uttar Pradesh
Google Map की गलती से फिर हुआ हादसा, बरेली में कार नहर में गिरी
उत्तर प्रदेश के बरेली में Google Map का इस्तेमाल करते हुए एक और हादसा हुआ। इज्जतनगर थाना क्षेत्र में पीलीभीत रोड पर एक टाटा टियागो कार गूगल मैप के निर्देशों का पालन करते हुए कलापुर नहर में गिर गई। कार में तीन युवक सवार थे। हादसे की सूचना मिलते ही पुलिस प्रशासन की टीमें मौके पर पहुंचीं और जेसीबी की मदद से कार को नहर से बाहर निकाला गया।
गूगल मैप के निर्देशों पर भरोसा बना हादसे की वजह
औरैया निवासी दिव्यांशु अपने दोस्तों के साथ हरियाणा नंबर प्लेट वाली कार में पीलीभीत जा रहे थे। उन्होंने बताया कि यात्रा के दौरान गूगल मैप का सहारा लिया। कलापुर नहर के पास बरकापुर तिराहे पर सड़क का कटान था, जिसे समय पर देख नहीं पाए, और कार नहर में पलट गई। गनीमत रही कि तीनों को कोई चोट नहीं आई। बाद में क्रेन की मदद से कार को बाहर निकाला गया।
एसपी सिटी ने दी जानकारी
एसपी सिटी मानुष पारिक ने बताया कि मंगलवार सुबह कानपुर से पीलीभीत जा रहे तीन लोग गूगल मैप के निर्देशों का पालन करते हुए गलत रास्ते पर चले गए, जिससे उनकी कार नहर में गिर गई। राहत की बात यह रही कि सभी सुरक्षित हैं, और कार को नहर से बाहर निकाल लिया गया है।
गूगल मैप के कारण पहले भी हुआ है हादसा
गौरतलब है कि यह पहली घटना नहीं है। 24 नवंबर को भी बरेली में गूगल मैप पर गलत रास्ता दिखाए जाने के कारण एक कार पुल से नीचे गिर गई थी। इस दर्दनाक हादसे में तीन युवकों की जान चली गई थी। बदायूं के दातागंज से बरेली के फरीदपुर जाते समय यह घटना हुई। अधूरे पुल के कारण कार 20 फीट नीचे जा गिरी। जांच में सामने आया कि इस मामले में पीडब्ल्यूडी की गंभीर लापरवाही थी।
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Agra: रेलवे स्टेशन पर मिली लावारिस नवजात, महिला सिपाही बनी ममता की मिसाल
मां की ममता वह करुणा है जो पत्थर को भी पिघला देती है। लेकिन कभी-कभी मानवता का ऐसा दृश्य सामने आता है, जो इस ममता पर सवाल खड़े कर देता है। Agra कैंट रेलवे स्टेशन पर रविवार शाम को ऐसा ही एक हृदयविदारक मामला सामने आया, जब एक नवजात बच्ची को उसकी मां फर्श पर छोड़कर चली गई।
नवजात बच्ची वेटिंग रूम में मिली
रविवार शाम को आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के सेकंड क्लास वेटिंग रूम में बच्ची के रोने की आवाज सुनाई दी। यात्रियों ने तुरंत आरपीएफ को सूचित किया। दो महिला सिपाहियों ने नवजात को गर्म कपड़े में लपेटा और तत्काल इलाज के लिए एसएन मेडिकल कॉलेज भेजा।
बच्ची की हालत नाजुक
चिकित्सकों ने बच्ची को एनआईसीयू में भर्ती किया। एसएन मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के अध्यक्ष, डॉ. नीरज यादव ने बताया कि बच्ची को रक्त संक्रमण और ठंड लगने के कारण बुखार है। नाल काटी नहीं गई थी और वह गंदगी में पड़ी रही, जिससे संक्रमण हुआ। डॉक्टरों ने उसे 48 घंटे की निगरानी में रखा है।
वॉशरूम में पड़ी मिली नवजात
आरपीएफ इंस्पेक्टर सुशील कुमार झा ने बताया कि रविवार शाम 5 बजे स्लीपर क्लास वेटिंग रूम के वॉशरूम में बच्ची के होने की सूचना मिली। सीसीटीवी फुटेज की जांच की जा रही है, लेकिन वॉशरूम कैमरे की सीमा में नहीं आता। यह स्पष्ट नहीं है कि बच्ची को कौन छोड़कर गया। वॉशरूम में प्रसव होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं।
लोग अपनाने को तैयार
बाल कल्याण समिति, एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट, और स्थानीय पुलिस को मामले की जानकारी दी गई है। बच्ची की देखभाल वर्तमान में आरपीएफ की महिला सिपाही गीता कश्यप कर रही हैं। अस्पताल में बच्ची की खबर फैलने के बाद, कई महिलाएं उसे गोद लेने की इच्छा जता रही हैं और प्रार्थना पत्र भी दे चुकी हैं।
यह घटना मानवता और ममता पर एक गहरा सवाल छोड़ती है, लेकिन साथ ही, समाज के उन संवेदनशील लोगों की उपस्थिति भी दिखाती है, जो ऐसे बच्चों को अपनाने के लिए तैयार हैं।
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Badaun की जामा मस्जिद शम्सी को लेकर आज कोर्ट में अहम सुनवाई, सुरक्षा के कड़े इंतजाम
Badaun की जामा मस्जिद शम्सी बनाम नीलकंठ महादेव मामले में आज जिला कोर्ट में सुनवाई होगी। हिंदू नेता मुकेश पटेल ने 2022 में दावा किया था कि इस मस्जिद को नीलकंठ महादेव मंदिर तोड़कर बनाया गया है। आज कोर्ट यह तय करेगा कि यह मामला सुनवाई के योग्य है या नहीं।
फास्ट ट्रैक कोर्ट में होने वाली सुनवाई में पहले मुस्लिम पक्ष अपनी दलीलें पेश करेगा। इससे पहले सरकारी वकील और पुरातत्व विभाग ने अपनी बहस पूरी कर ली है। पुरातत्व विभाग ने इस स्थल को अपनी संपत्ति बताया है। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए कोर्ट परिसर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।
मस्जिद या मंदिर: दोनों पक्षों की दलीलें
हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद से पहले वहां नीलकंठ महादेव मंदिर था, जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई। वहीं, मुस्लिम पक्ष ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि इस मस्जिद का निर्माण सूफी संत शमशुद्दीन अल्तमश ने करवाया था और यहां कभी भी मंदिर होने के कोई सबूत नहीं मिले।
मामले में प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट 1991 का भी हवाला दिया जा रहा है। इस एक्ट के तहत धार्मिक स्थलों की स्थिति को 1947 की स्थिति के अनुसार बनाए रखने का प्रावधान है।
संभल की मस्जिद पर भी विवाद
इससे पहले यूपी के संभल में शाही जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर विवाद बढ़ा था। 24 नवंबर को हुए हिंसक प्रदर्शन में चार लोगों की मौत हो गई थी। इस मामले को लेकर राजनीति भी तेज हो गई है। सपा ने इसे सरकार की साजिश बताया है।आज की सुनवाई के फैसले पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। इससे मामले की आगे की दिशा तय होगी।
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