Connect with us

Punjab

वीर बाल दिवस के नाम पर अकाली दल के दोहरे मापदंडों का पर्दाफाश, Pannu ने हरसिमरत बादल के पिछले समर्थन पर उठाए सवाल

Published

on

आम आदमी पार्टी पंजाब के मीडिया प्रभारी बलतेज पन्नू ने ‘वीर बाल दिवस’ के नाम को लेकर चल रहे विवाद और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी द्वारा एसजीपीसी में रोजाना हो रहे घोटालों के बारे में दिए गए ताजा बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।

पार्टी कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए वीर बाल दिवस पर बोलते हुए पन्नू ने कहा कि श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ने सांसदों को पत्र लिखकर नाम बदलने की मांग की थी, जिसके बाद ‘आप’ के सांसदों ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों में इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया और मीडिया के जरिए भी इसे उजागर किया। उन्होंने दोहराया कि ‘आप’ साहिबजादों को “बाल” (बच्चे) नहीं मानती बल्कि उन्हें ‘बाबाओं’ के रूप में सम्मान देती है और उन्हें “निक्कीआं जिंदां, वड्डे साके” के रूप में याद करती है।

पन्नू ने इशारा किया कि जहां शिरोमणि अकाली दल (बादल) आज वीर बाल दिवस के नाम का कड़ा विरोध कर रहा है, लेकिन रिकॉर्ड बताते हैं कि जब वीर बाल दिवस की शुरुआत हुई थी, तब कई सांसदों ने इसके समर्थन में दस्तखत किए थे, जिनमें सुखबीर सिंह बादल और हरसिमरत कौर बादल भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि पहले किसी मुद्दे पर स्टैंड लेना और बाद में उससे पीछे हटना अकाली दल का पुराना पैटर्न रहा है, चाहे वो पंथक मुद्दे हों या पंजाब के हित।

एक और उदाहरण देते हुए पन्नू ने कृषि कानूनों के आंदोलन के दौरान अकाली नेताओं की भूमिका को याद करते हुए कहा कि किसी ने भी अकाली दल से ज्यादा आक्रामक तरीके से तीन कृषि कानूनों का प्रचार नहीं किया। उन्होंने कहा कि तब प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर बादल और हरसिमरत कौर बादल के वीडियो लगातार वायरल किए जाते थे, जिनमें इन कानूनों को फायदेमंद बताया गया था। जब जनता के दबाव में कानून वापस लिए गए तो अकाली नेतृत्व ने अपनी गलती नहीं मानी, बल्कि यह दावा किया कि वे लोगों को कानून “समझा” नहीं सके।

पन्नू ने हरसिमरत कौर बादल के 2019 के एक ट्वीट का भी हवाला दिया, जो वीर बाल दिवस पर पोस्ट किया गया था। इसमें साहिबजादों की तस्वीरें थीं, जिनको वीर बाल दिवस कहा गया था और यहां तक कि #ChildrensDay हैशटैग का इस्तेमाल भी किया गया था।

पन्नू ने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार से अपील करते हुए कहा कि जिस तरह सांसदों को वीर बाल दिवस के नामकरण का विरोध करने के लिए कहा गया था और पंजाब के सांसदों ने संसद में अपना विरोध दर्ज कराकर सहमति जताई थी, उसी तरह अब अकाली नेताओं से नाम को अंतिम रूप देने के समय उनकी भूमिका और समर्थन के बारे में पूछताछ की जानी चाहिए।

दूसरे मुद्दे पर बात करते हुए पन्नू ने एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी की प्रेस कॉन्फ्रेंस का जवाब दिया, जहां धामी ने सवाल किया था कि क्या सरकार खुद को श्री अकाल तख्त साहिब से ऊपर समझती है। पन्नू ने स्पष्ट किया कि पंजाब सरकार ने कभी भी श्री अकाल तख्त साहिब से ऊपर होने का दावा नहीं किया और वह इस संस्था का दिल से सम्मान करती है।

पन्नू ने धामी के उस बयान पर सवाल उठाए कि “एसजीपीसी में रोजाना 10-20 घोटाले होते हैं”। उन्होंने पूछा कि धामी स्पष्ट करें कि ये किस तरह के घोटाले हैं क्या ये वित्तीय हैं, घी की खरीद से संबंधित हैं, रसीदों से हैं या निर्माण कार्यों से? पन्नू ने कहा कि एसजीपीसी के मुख्य सेवादार के रूप में धामी सिख संगत को इसका स्पष्ट और पारदर्शी जवाब देने के लिए बाध्य हैं।

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि धामी एसजीपीसी अध्यक्ष के पद पर रहते हुए अक्सर शिरोमणि अकाली दल (बादल) के प्रवक्ता के रूप में बोलते हैं, जिससे भ्रम पैदा होता है। पन्नू ने कहा कि धामी एक धार्मिक संस्था की आड़ में राजनीतिक बयानबाजी करते हैं, जो कि अनुचित है।

2015 की बेअदबी की घटना का हवाला देते हुए पन्नू ने एक टेलीविजन बहस को याद किया जहां एसजीपीसी के एक सदस्य ने दावा किया था कि जिस गुरुद्वारा साहिब से गुरु ग्रंथ साहिब का स्वरूप चोरी हुआ था, वह एसजीपीसी के अधीन नहीं था। पन्नू ने सवाल किया कि क्या गुरु ग्रंथ साहिब सिर्फ एसजीपीसी के प्रबंध वाले गुरुद्वारों में ही गुरु माने जाते हैं? उन्होंने ऐसी दलीलों को बेहद चिंताजनक बताया।

गुरु ग्रंथ साहिब के 328 स्वरूपों के मुद्दे पर पन्नू ने याद दिलाया कि इस संबंध में एफआईआर दर्ज हो चुकी है और एसआईटी का गठन किया गया है। खुद एसजीपीसी ने जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ विभागीय और कानूनी कार्रवाई की मांग करने का प्रस्ताव पारित किया था। उन्होंने कहा कि एसजीपीसी को अब जवाबदेही में देरी करने की बजाय एसआईटी को सहयोग करना चाहिए और कानून को अपना काम करने देना चाहिए।

पन्नू ने कहा कि अगर कोई राजनीतिक तौर पर बोलना चाहता है तो वह खुलकर राजनीतिक हैसियत में ऐसा करे, लेकिन धार्मिक संस्थाओं को राजनीतिक एजेंडे के लिए ढाल के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। संगत और कानून के प्रति जवाबदेही सबसे ऊपर होनी चाहिए।

Continue Reading
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement