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Uttar Pradesh

एंटीबायोटिक के प्रभावी न होने पर हल्दी बचाएगी जान, ICU मरीजों पर अध्ययन में हुआ खुलासा।

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उत्तरप्रदेश। सेंटर फॉर बायोमेडिकल रिसर्च के एक संयुक्त अध्ययन में हल्दी में पाए जाने वाले करक्यूमिन के प्रभाव का विश्लेषण किया गया। अध्ययन में यह पाया गया कि हल्दी में मौजूद करक्यूमिन बैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी है।

ICU में भर्ती मरीजों में सबसे ज्यादा मौतें संक्रमण और एंटीबायोटिक प्रतिरोध क्षमता के कारण होती हैं। ऐसे में हल्दी एक कारगर उपाय साबित हो सकती है, क्योंकि इसमें पाया जाने वाला करक्यूमिन दवा प्रतिरोधी क्षमता को प्रभावित करने के साथ-साथ संक्रमण को भी खत्म करता है।

यह निष्कर्ष सेंटर फॉर बायोमेडिकल रिसर्च के अध्ययन में सामने आया है, जो कि हाल ही में माइक्रोबायल ड्रग रेजिस्टेंट के ताजे अंक में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन में उन ICU मरीजों को शामिल किया गया जो मेथिसिलिन-प्रतिरोधी स्टैफिलोकोकस ऑरियस (MRSA) बैक्टीरिया से संक्रमित थे। यह बैक्टीरिया त्वचा और फेफड़ों में संक्रमण का कारण बनता है और कई एंटीबायोटिक्स के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर लेता है। इसके इलाज के लिए वैनकोमाइसिन इंजेक्शन प्रमुख दवाइयों में से एक है।

हालांकि, मल्टीड्रग-प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों के कारण यह इंजेक्शन भी अब बैक्टीरिया पर प्रभावी नहीं रहा है, जिससे नए उपचार विकल्पों की आवश्यकता महसूस हो रही है। इसी संदर्भ में किए गए अध्ययन में हल्दी के करक्यूमिन के प्रभाव का मूल्यांकन किया गया, और पाया गया कि इसमें बैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी क्षमता है। यह अध्ययन अनुपमा गुलेरिया, निदा फातिमा, अनुज शुक्ला, डॉ. रितु राज, चिन्मय साहू, नारायण प्रसाद, आशुतोष पाठक और दिनेश कुमार द्वारा किया गया।

इंजेक्शन के साथ जांचा गया प्रभाव।

अध्ययन में शोरबा माइक्रोडिल्यूशन विधि का उपयोग करते हुए वैनकोमाइसिन इंजेक्शन के साथ करक्यूमिन के संयोजन के प्रभाव का मूल्यांकन किया गया। शोरबा माइक्रोडिल्यूशन विधि का प्रयोग सूक्ष्मजीवों की एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति संवेदनशीलता का परीक्षण करने के लिए किया जाता है।

करक्यूमिन के प्रभाव के कारण, वैनकोमाइसिन ने बैक्टीरिया के खिलाफ 20 में से 17 उपभेदों पर सकारात्मक प्रभाव दिखाया। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि करक्यूमिन और वैनकोमाइसिन का संयोजन चिकित्सा संक्रमणों के इलाज के लिए एक प्रभावी उपाय हो सकता है। मेडिकल जर्नल लैंसेट के अनुसार, 2019 में भारत में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी संक्रमणों के कारण लगभग तीन लाख मौतें हुईं, और हर साल करीब 60,000 बच्चों की जान इन संक्रमणों के कारण चली जाती है।

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