Uttar Pradesh
Ganga में कूदी मोना की नहीं मिली लाश, माता-पिता को खोने के गम में डूबे हैं दोनों बच्चे

पति सौरभ बब्बर के साथ Ganga नहर में कूदी मोना बब्बर का दूसरे दिन भी पता नहीं चल सका। मंगलवार को पुलिस और गोताखोरों की टीम उसकी तलाश में जुटी रही। कुछ लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि मोना का शव रुड़की में गंगा नहर में मिला है, लेकिन उसके परिवार ने कहा कि यह सच नहीं है।
शहर के खेमका सदन नामक स्थान पर सौरभ बब्बर को याद करने और उनके सम्मान में परिवार और दोस्त एकत्र हुए। उन्होंने उनके दो बच्चों 13 वर्षीय श्रद्धा और 7 वर्षीय अनमोल को सांत्वना देने की कोशिश की, जो विकलांग हैं। दोनों बच्चे बहुत दुखी और हताश थे, क्योंकि उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था और वे रोना बंद नहीं कर पा रहे थे।
जबकि सौरभ बब्बर नामक व्यापारी और उसकी पत्नी ने बहुत सारा पैसा लेकर आत्महत्या कर ली, वहीं उनका परिवार बहुत दुखी है। जिन लोगों ने सौरभ को अपना पैसा सौंपा था, वे भी दुखी हैं, क्योंकि उन्होंने अपना पैसा खो दिया। उनमें से कई लोगों का मानना है कि अगर सौरभ इतना दुखद काम करने के बजाय यहीं चले जाते, तो बेहतर होता।
सौरभ बब्बर पैसों की बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गए और कोई नहीं जानता कि यह कैसे हुआ। न तो उनके परिवार वाले और न ही उन्हें पैसे देने वाले लोग ही इसका कारण बता सकते हैं। सौरभ लॉटरी जैसे खेल के प्रभारी थे, जिसमें लोग उन्हें हर महीने दो हजार रुपए देते थे। इस खेल को 200 लोग खेलते थे, इसलिए वह हर महीने चार लाख रुपए जमा करते थे। लॉटरी से विजेताओं को चुनने के बाद, विजेताओं को उनके पुरस्कार के रूप में सोने और चांदी के गहने मिले और फिर उन्हें समूह छोड़ना पड़ा।
जो लोग नहीं जीत पाए, उन्होंने अगले महीने फिर से कोशिश करने के लिए अपने पैसे समूह में वापस डाल दिए। इस दौरान लोगों ने बताया कि सौरभ ने शहर के एक प्रसिद्ध स्वर्ण विक्रेता से सोना खरीदा था, ताकि वह उन लोगों को दे सके, जिन्होंने उसके साथ समूह में सोना डाला था। उसने लोगों द्वारा समूह में डाले गए पैसे से सात करोड़ रुपए (बहुत सारा पैसा) भी स्वर्ण विक्रेता को दे दिए। कुछ दिन पहले व्यापारी का बेटा पैसे लेकर दूसरे देश भाग गया। इससे सौरभ बहुत चिंतित और दुखी हो गया।
अधिक से अधिक लोग सौरभ से पैसे के बारे में पूछने लगे। इस सारे दबाव के कारण सौरभ और उसकी पत्नी ने अपनी जान लेने का फैसला किया। लखनौती गांव में रहने वाले सदाकत हुसैन ने जब सुना कि सौरभ बब्बर नामक स्वर्ण व्यापारी की मृत्यु हो गई है, तो वह सौरभ के घर किशनपुरा गए। सदाकत ने बताया कि उनका बेटा हैदर अली सोना खरीदने के लिए सौरभ के साथ पैसे जमा कर रहा था। वे पहले ही 16 किश्तें दे चुके थे। उन्हें उम्मीद थी कि वे इस पैसे का इस्तेमाल हैदर की बहन की शादी के लिए गहने खरीदने में करेंगे, लेकिन सौरभ की मौत के बाद उन्हें चिंता थी कि शायद उन्हें अपना पैसा वापस न मिले।
आस-पास रहने वाले लोगों का कहना है कि सौरभ का परिवार शिरडी साईं से बहुत प्यार करता है और उनकी पूजा करता है, जो एक खास पवित्र व्यक्ति हैं। हर महीने, वे एक बड़ा भोज करते हैं जिसे भंडारा कहते हैं, जिसमें वे दूसरों के साथ खाना खाते हैं।
सौरभ और उनकी पत्नी बहुत दुखी थे और खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहे थे क्योंकि उन पर बहुत सारा पैसा बकाया था और वे इसे वापस नहीं कर सकते थे। उन्होंने अपनी जान लेने का फैसला किया। अब, पुलिस पैसे इकट्ठा करने वाले समूहों की जांच कर रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि आखिर हुआ क्या था। पुलिस अधिकारी शहर में इन धन समूहों के बारे में और जानकारी जुटा रहे हैं।