Punjab
संयुक्त किसान मोर्चा और Punjab सरकार की बैठक, राष्ट्रीय कृषि बाजार नीति के खिलाफ मोर्चा
आज Punjab भवन में संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े संगठनों के नेताओं की पंजाब सरकार और कृषि मंत्री सरदार गुरमीत सिंह खुडियां के साथ महत्वपूर्ण बैठक हुई। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय कृषि बाजार नीति के प्रारूप पर चर्चा करना था।
ड्राफ्ट पर चर्चा और आपत्तियां
बैठक की शुरुआत में पंजाब सरकार के अधिकारियों ने नीति के प्रारूप की जानकारी दी। इसके बाद किसान नेताओं ने इसे लेकर अपनी राय व्यक्त की। किसानों ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह राष्ट्रीय कृषि बाजार नीति तीन काले कृषि कानूनों को एक नए रूप में लागू करने की कोशिश है, जिन्हें दिल्ली के ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान खारिज कर दिया गया था।
किसानों ने मांग की कि पंजाब सरकार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इस ड्राफ्ट को सिरे से खारिज करे। उनका कहना था कि यदि सरकार एपीएमसी (कृषि उपज मंडी समिति) को कमजोर मानती है, तो उसे एपीएमसी को और मजबूत करना चाहिए, नई मंडियां खोलनी चाहिए और सरकारी क्षेत्र में इन मंडियों की सुविधाओं को बढ़ाना चाहिए।
साइलो और एमएसपी की मांग
किसानों ने सरकारी क्षेत्र में साइलो बनाने और उसमें रखे अनाज को सरकारी मंडियों के माध्यम से खरीदने की मांग रखी। इसके साथ ही, उन्होंने सभी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के वादे को पूरा करने और गन्ने से जुड़ी समस्याओं के समाधान की मांग भी उठाई।
कृषि मंत्री का समर्थन
कृषि मंत्री सरदार गुरमीत सिंह खुडियां ने किसानों की बातों को गंभीरता से सुना और मसौदे पर किसानों से सहमति जताई। उन्होंने कहा कि यह नीति यदि लागू हुई, तो पंजाब की मंडियों के लिए हानिकारक साबित हो सकती है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि पंजाब सरकार अपने किसानों के साथ खड़ी है और इस नीति के हर पहलू पर विशेषज्ञों और अन्य हितधारकों से विचार-विमर्श करेगी।
राष्ट्रीय स्तर पर विरोध की योजना
किसान नेताओं ने कहा कि यह लड़ाई सिर्फ पंजाब तक सीमित नहीं रहेगी। देशभर में इस नीति के खिलाफ विरोध किया जाएगा और इसे लागू होने से रोकने के लिए हर संभव कदम उठाया जाएगा।
बैठक में शामिल प्रमुख नेता
इस बैठक में संयुक्त किसान मोर्चा के कई प्रमुख नेता शामिल हुए, जिनमें जोगिंदर सिंह उगराहां, डॉ. दर्शन पाल, बलवीर सिंह राजेवाल, मनजीत सिंह धनेर, डॉ. सतनाम सिंह अजनाला, प्रेम सिंह भंगू, रुलदू सिंह मानसा, और अन्य किसान नेता शामिल थे।