Uttar Pradesh
Baba Ramdev ने मोहन भागवत के बयान पर दी प्रतिक्रिया, आक्रांताओं को सजा देने की बात कही

योग गुरु Baba Ramdev ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत द्वारा मंदिरों और मस्जिदों के मुद्दे पर दिए गए बयान पर अपनी राय व्यक्त की। हरिद्वार के गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में आयोजित स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती के 99वें बलिदान दिवस समारोह के दौरान बाबा रामदेव ने कहा कि यह भागवत का निजी विचार है। उन्होंने कहा कि इस पर कई संत भी अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन उनका मानना है कि सनातन धर्म पर हमला करने वाले आक्रांताओं को सजा अवश्य मिलनी चाहिए।
सनातन धर्म पर हमलों का मुद्दा
Baba Ramdev ने कहा: “यह सच है कि आक्रांताओं ने हमारे धार्मिक स्थलों, मंदिरों और तीर्थ स्थलों पर हमला किया और हमारे गौरव के प्रतीकों को नष्ट किया। न्यायपालिका का काम है कि वे ऐसे लोगों को सजा दें।”
योग गुरु ने जोर देकर कहा कि बड़े तीर्थ स्थानों और ऐतिहासिक स्थलों पर ऐसे निर्णय लेने चाहिए, जो आक्रमणकारियों के गलत कृत्यों का जवाब दे सकें। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का काम है दंड देना, लेकिन पापियों को उनके पापों का फल अवश्य मिलना चाहिए।
गुरुकुल शिक्षा प्रणाली का समर्थन
Baba Ramdev ने कहा कि वह पूरे देश में गुरुकुल की शिक्षा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने कहा कि इस शिक्षा पद्धति को पुनर्जीवित करना भारतीय संस्कृति को सुदृढ़ करने के लिए जरूरी है।
एस.वाई. कुरैशी सहित मुस्लिम समूह की प्रतिक्रिया
उधर, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी और मुस्लिम समुदाय के प्रतिष्ठित लोगों के एक समूह ने मोहन भागवत की समावेशी समाज की वकालत करने वाली टिप्पणी का स्वागत किया। उन्होंने भागवत की इस बात की सराहना की कि समाज को जोड़ने के प्रयास किए जाने चाहिए।
मोहन भागवत ने हाल में मंदिर-मस्जिद विवादों को लेकर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था: “अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोग ऐसे मुद्दों को उठाकर खुद को ‘हिंदुओं का नेता’ साबित करने की कोशिश कर रहे हैं।”
देश में भाईचारे की अपील
Baba Ramdev ने अपनी बात समाप्त करते हुए देश में भाईचारा बनाए रखने की अपील की। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने के प्रयास किए जाने चाहिए, लेकिन इससे समाज में सौहार्द बना रहना चाहिए।
राजनीतिक और सामाजिक माहौल गरमाया
भागवत और बाबा रामदेव के बयानों के बाद यह मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक चर्चा का केंद्र बन गया है। एक ओर उनके बयानों को धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखा जा रहा है, तो दूसरी ओर इसे समाज में सौहार्द बढ़ाने की दिशा में सकारात्मक पहल के रूप में भी लिया जा रहा है।