Chandigarh
35 वर्षों के सियासी सफर में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छुक हैं कुमारी सैलजा
चंडीगढ़ : हरियाणा में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर अभी से सियासी हलचल तेज हो चुकी है। इसी बीच अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव एवं छत्तीसगढ़ की प्रभारी कुमारी सैलजा ने एक बार फिर से विधानसभा चुनाव लडऩे की इच्छा जाहिर की है। विशेष बात यह है कि कुमारी सैलजा छत्तीसगढ़ में मतदान होने के बाद बड़ी जीत के आत्मविश्वास से लबरेज अब एक बार फिर से अपने गृह राज्य हरियाणा में आक्रामक तेवरों साथ नजर आ रही हैं। कुमारी सैलजा ने यह भी साफ कर दिया है कि मुख्यमंत्री के चेहरे का फैसला हाईकमान तय करेगा। खास बात यह है कि कुमारी सैलजा भी स्वयं को कभी मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में न खुद प्रस्तुत करती हैं और कार्यकर्ताओं को भी ऐसा करने से रोकती हैं।
सैलजा जल्द ही राज्य की सभी दस संसदीय क्षेत्रों में यात्रा के जरिए जनसंपर्क अभियान चलाकर जनता की नब्ज भी टटोलेंगी। इससे पहले सैलजा अपने अब तक के करीब 35 वर्ष के सक्रिय सियासी सफर में केंद्र की राजनीति में ही सक्रिय रही हैं और वे 4 बार लोकसभा की सदस्य रहने के अलावा 1 बार राज्यसभा सदस्य और 3 बार केंद्र में मंत्री रह चुकी हैं। 1991 में वे नरसिम्हा राव सरकार में उप शिक्षा मंत्री रहीं। 2004 में मनमोहन सरकार में वे आवास एवं गरीबी उन्मूलन मंत्री रहीं। 2009 से 2012 तक वे सामाजिक अधिकारिता, जबकि 2012 से 2014 तक पर्यटन मंत्री रहीं। 2014 में कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया।
पिता के निधन के बाद राजनीति में सैलजा हुईं सक्रिय
उल्लेखनीय है कि कुमारी सैलजा अपने पिता चौ.दलबीर सिंह के निधन के बाद साल 1988 में सियासत में सक्रिय हुईं। उनके पिता के निधन के बाद 1988 में हुए उपचुनाव में कुमारी सैलजा ने सिरसा लोकसभा सीट से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन कामयाबी नहीं मिलीं। सैलजा 1991 और 1996 में सिरसा से, जबकि 2004 और 2009 में अंबाला से सांसद चुनी गईं। सैलजा ने अब तक के अपने 35 वर्ष के सियासी सफर में करीब 7 संसदीय चुनाव लड़े, लेकिन एक बार भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। वे 1988, 1991, 1996 और 1998 में सिरसा से जबकि 2004, 2009 और 2014 में अंबाला से चुनाव लड़ चुकी हैं। कुमारी सैलजा को सितंबर 2019 में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया गया। वे इस पद पर 20 अप्रैल 2022 तक रहीं।
इसके बाद से ही सैलजा अक्सर लोकसभा चुनाव की बजाय विधानसभा चुनाव लडऩे की इच्छा जाहिर कर चुकी हैं। अब एक बार फिर से सैलजा ने कहा है कि वे कई बार संसदीय चुनाव लड़ चुकी हैं और अब प्रदेश की सियासत में सक्रिय होने के चलते वे विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाना चाहती हैं। हालांकि सैलजा ने यह इच्छा जाहिर की है कि वे विधानसभा चुनाव लडऩा चाहती हैं, लेकिन हाईकमान जो भी फैसला करेगा वो उन्हें स्वीकार्य होगा। सियासी विशेषज्ञों का मानना है कि सैलजा उकलाना विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ सकती हैं। उकलाना से 2019 में जजपा के अनूप धानक विधायक चुने गए थे और कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही थीं। पिछले काफी समय से छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में सक्रिय कुमारी सैलजा अब एक बार फिर से अपने गृह राज्य में अपनी राजनीतिक गतिविधियां तेज करते हुए सभी दस संसदीय क्षेत्रों में दस्तक भी देंगी।
पुराने साथियों के साथ लगातार समन्वय बरकरार
खास बात यह है कि कुमारी सैलजा का शुरूआती राजनीतिक कर्मक्षेत्र सिरसा रहा। इसके अलावा वे हिसार में भी सक्रिय रहीं और साल 1999 के बाद उन्होंने अंबाला को अपनी कर्मभूमि बना लिया। बावजूद इसके अंबाला, हिसार, सिरसा, फतेहाबाद जैसे क्षेत्रों में अपने पुराने साथियों व समर्थकों के साथ उनका समन्वय लगातार बरकरार रहा। खास पहलू यह है कि छत्तीसगढ़ का प्रभारी नियुक्त किए जाने के बाद भी समय-समय पर कुमारी सैलजा लगातार सिरसा, अंबाला, फतेहाबाद व हिसार सहित प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में सक्रिय नजर आईं हैं। अभी पिछले सप्ताह अपने सिरसा प्रवास के दौरान कुमारी सैलजा अपने समर्थकों के बीच पहुंचीं और उनसे सियासी मंथन भी किया। यही नहीं पिछले कुछ महीनों में सिरसा, फतेहाबाद के अनेक कांग्रेसी भी कुमारी सैलजा के नेतृत्व में कांग्रेस में वापसी कर चुके हैं। इसके अलावा कुमारी सैलजा सिरसा संसदीय क्षेत्र में दो बड़ी सभाएं भी कर चुकी हैं। कुमारी सैलजा के इस तरह के आक्रामक तेवरों के साथ सक्रिय होने के बाद अब उनके समर्थक भी काफी उत्साहित नजर आ रहा हैा। सोशल मीडिया पर तो उनके कई समर्थकों की ओर से सैलजा को भावी मुख्यमंत्री के रूप में भी प्रोजैक्ट किया जा रहा है।
सैलजा को संगठन का है लंबा अनुभव
कुमारी सैलजा को संगठन में भी बड़ा लंबा अनुभव है। 1990 में कुमारी सैलजा को हरियाणा महिला कांग्रेस का प्रधान भी चुना गया। इसके अलावा वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सदस्य रहने के अलावा कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य भी हैं। वर्तमान में कुमारी सैलजा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव हैं। पिछले साल दिसंबर में कुमारी सैलजा को छत्तीसगढ़ का प्रभारी नियुक्त किया गया था। 1991 में वे पहली बार सिरसा से सांसद चुनी गईं और 29 वर्ष की उम्र में केंद्रीय मंत्री बनीं। 1996 में कुमारी सैलजा दूसरी बार सिरसा सीट से सांसद निर्वाचित हुईं। साल 1998 में वे इनैलो के डा. सुशील इंदौरा से चुनाव हार गईं। साल 2004 के संसदीय चुनाव में पार्टी ने उन्हें सिरसा की बजाय अम्बाला संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाया और उस चुनाव में उन्होंने अम्बाला संसदीय क्षेत्र से भाजपा के रत्तनलाल कटारिया को हराया। 2009 के संसदीय चुनाव में वे फिर से अम्बाला से सांसद चुनी गईं। 2014 में उन्हें कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने राज्यसभा का सदस्य जबकि 2019 में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। खास बात यह है कि कुमारी सैलजा एकमात्र ऐसी महिला नेत्री हैं जो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनी हैं, जबकि उनसे पहले किसी महिला को कांग्रेस अध्यक्ष पद तक पहुंचने का अवसर हासिल नहीं हुआ।
वफादारी का मिलता रहा है पुरस्कार
गौरतलब है कि कुमारी सैलजा को कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी का विश्वासपात्र माना जाता है। कुमारी सैलजा कांग्रेस पार्टी के प्रति हमेशा से ही वफादार रही हैं। 1988 से लेकर अब तक के 35 वर्षों के सफर में कुमारी सैलजा ने कभी भी पार्टी की लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघा है और हमेशा अनुशासन के दायरे में रहकर संगठन के लिए काम किया। यही वजह रही कि पार्टी हाईकमान द्वारा कुमारी सैलजा को वफादारी का पुरस्कार भी दिया जाता रहा है। इस कड़ी में उन्हें कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने सांसद से लेकर केंद्रीय मंत्री, हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महासचिव, अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य एवं छत्तीसगढ़ के प्रभारी जैसे बड़े पदों पर नियुक्त किया है। उल्लेखनीय है कि विवादों से हमेशा दूर रहने वाली कुमारी सैलजा ने संगठन में रहते हुए पार्टी को मजबूत किया है। विशेष बात यह है कि उन्हें सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का भी करीबी माना जाता है। कुमारी सैलजा के पिता चौ. दलबीर सिंह तीन दशक कांग्रेस की सियासत में सक्रिय रहे और अपने पिता के निधन के बाद 1988 से कुमारी सैलजा कांग्रेस में रहकर राजनीति कर रही हैं। कांग्रेस हाईकमान की ओर से अप्रैल 2022 में जब कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष पद से उन्हें हटाया गया तो भी सैलजा ने शीर्ष नेतृत्व के फैसले को ही सर्वोपरि बताया था। इसके साथ ही कुमारी सैलजा तेजी से एक दलित महिला नेत्री के रूप में राष्ट्रीय राजनीति में पहचान बनाने में सफल हुई हैं।