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India में खाद्य संकट की आशंका, जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं और चावल उत्पादन में गिरावट
India को खाद्य संकट का सामना करने की आशंका जताई जा रही है, और इसके मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हो सकते हैं। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण चावल और गेहूं का उत्पादन घट सकता है, जिससे इनकी कीमतों में वृद्धि हो सकती है और आम आदमी के लिए रोटी खाना मुश्किल हो सकता है। मौसम विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने पुष्टि की है कि चावल और गेहूं के उत्पादन में 6 से 10 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर गहरा असर पड़ेगा।
अभी भी गेहूं की आपूर्ति मांग के हिसाब से नहीं हो पा रही है, और यदि उत्पादन में और कमी आई, तो खाद्य संकट गहरा सकता है। इस समय, आटा मिलों को गेहूं की आपूर्ति में कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण गेहूं की कीमतें 3500 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुकी हैं।
भारत ने 2023-24 के दौरान 113.29 मिलियन टन गेहूं और 137 मिलियन टन चावल का उत्पादन किया था, जो देश की खाद्य सुरक्षा के लिए अहम है। भारत के 1.4 अरब लोग इन दोनों खाद्य पदार्थों पर निर्भर हैं, और देश की लगभग आधी आबादी कृषि पर निर्भर है, जिसमें 80 प्रतिशत किसान छोटे और सीमांत हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है।
मौसम विज्ञानियों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, जिसका असर मछली के उत्पादन पर पड़ रहा है। मछलियाँ ठंडे पानी में रहना पसंद करती हैं, और जैसे-जैसे समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, मछलियाँ ठंडे पानी की तलाश में गहरे समुद्र में जा रही हैं, जिससे मछुआरे समुदाय की आजीविका प्रभावित हो रही है।
मौसम विभाग के महानिदेशक मतुतुंजय महापात्र ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं और चावल के उत्पादन में 6 से 10 प्रतिशत की कमी आ सकती है, जिससे किसानों और खाद्य सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ेगा। उन्होंने यह भी बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति और तीव्रता घट रही है, जिससे मौसम में बदलाव आ रहा है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम रविचंद्रन ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय और इसके आसपास के इलाकों में जल संकट गहरा सकता है, और नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (एनआईसीआरए) के अनुसार 2100 तक भारत में गेहूं उत्पादन में 6 से 25 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है।
मौसम विभाग के अधिकारियों ने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगाना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि अब छोटे क्षेत्रों में कई मौसम घटनाएं एक साथ घटित हो रही हैं।
जल संकट और बढ़ने की संभावना है, खासकर उत्तर पश्चिम भारत में, जहां पश्चिमी विक्षोभ की संख्या और तीव्रता घटने से हिमालय में बर्फ का जमाव कम हो रहा है, जिससे पानी की उपलब्धता पर असर पड़ सकता है।
मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 1901 से 2018 के बीच भारत का औसत तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है, और 2024 भारत का सबसे गर्म साल हो सकता है, जहां औसत न्यूनतम तापमान 0.90 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा।