Punjab
सिख कार्यकर्ता बापू Surat Singh Khalsa का निधन, लंबे समय तक भूख हड़ताल के लिए रहेंगे याद
सिख समुदाय के अधिकारों के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले प्रख्यात कार्यकर्ता बापू Surat Singh Khalsa का निधन हो गया है। वे 8 साल से अधिक समय तक भूख हड़ताल पर रहे और उनकी यह हड़ताल उन सिख बंदियों की रिहाई के लिए थी, जिन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली थी, लेकिन 30 वर्षों से अधिक समय से जेलों में बंद थे।
शांतिपूर्ण आंदोलन का प्रतीक
बापू सूरत सिंह ने 16 जनवरी 2015 को 82 वर्ष की आयु में अपने गांव हसनपुर, लुधियाना में भूख हड़ताल शुरू की थी। यह विरोध प्रदर्शन भारतीय आधुनिक इतिहास के सबसे लंबे और शांतिपूर्ण आंदोलनों में से एक बन गया। उनके संघर्ष ने सिख समुदाय के अधिकारों और बंदी सिखों की रिहाई की मांग को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया।
बापू सूरत सिंह खालसा के संघर्ष ने सिख समुदाय में जागरूकता बढ़ाई और उन्हें न्याय और मानवाधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बना दिया। उनके निधन से सिख समुदाय में शोक की लहर दौड़ गई है। उनका नाम उनके बलिदान और संघर्ष के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।
सूरत सिंह खालसा: एक परिचय
सूरत सिंह खालसा का जन्म 7 मार्च 1933 को लुधियाना के हसनपुर गांव में हुआ था। वे एक नागरिक अधिकार कार्यकर्ता थे और सिख समुदाय में “बापू सूरत सिंह खालसा” के नाम से पहचाने जाते थे।
वे एक सरकारी शिक्षक थे, लेकिन ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में जून 1984 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी।उनके पांच बेटे और एक बेटी अमेरिकी नागरिक हैं। बापू सूरत सिंह खुद भी अमेरिकी नागरिक थे। वे 1988 में अपने बच्चों के साथ रहने के लिए अमेरिका गए थे और नियमित रूप से पंजाब आते रहते थे।
सिख समुदाय के लिए योगदान
बापू सूरत सिंह का जीवन सिख समुदाय के अधिकारों और न्याय के प्रति समर्पित रहा। उनके संघर्ष ने न केवल बंदी सिखों की रिहाई के मुद्दे को उजागर किया, बल्कि मानवाधिकारों की रक्षा के लिए प्रेरणा भी दी। उनका यह बलिदान सिख इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय रहेगा।
उनके निधन पर सिख समुदाय सहित कई सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने गहरा दुख व्यक्त किया है। बापू सूरत सिंह खालसा को उनकी दृढ़ता और साहस के लिए हमेशा याद किया जाएगा।