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अभिनेत्री Kangana Ranaut पर sedition case होगा या नहीं…फैसला आज— “किसान आंदोलन में… bill वापसी न होती तो planning लंबी थी”

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 क्या है मामला:

‘मंडी’ (हिमाचल प्रदेश) से सांसद और फिल्म-अभिनेत्री कंगना रनौत के खिलाफ आगरा में एक वाद (lawsuit) दायर किया गया है जिसमें उन पर किसानों और देश की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का आरोप है।

वाद में दावा किया गया है कि कंगना ने 26 अगस्त 2024 के एक इंटरव्यू में यह कहा था कि “किसान आंदोलन के दौरान रेप-मर्डर हुए थे, अगर बिल वापसी न होती तो प्लानिंग लंबी थी” — जिससे किसानों की भावनाएँ आहत हुईं। और इस बयान को किसानों के अपमान और “राष्ट्रद्रोह” के रूप में देखा गया।

वाद कब और कैसे दायर हुआ

  • 11 सितंबर 2024 को एडवोकेट रमाशंकर शर्मा ने आगरा की स्पेशल MP-MLA कोर्ट में यह वाद दायर किया था।
  • वादी का कहना है कि कंगना ने किसानों को “हत्यारा, बलात्कार करने वाला, उग्रवादी” जैसे शब्दों से जोड़ा है।
  • साथ ही यह भी आरोप है कि उन्होंने देश के राष्ट्रपिता जैसे महत्‍मा गांधी के अहिंसात्मक सिद्धांत का मज़ाक उड़ाया था।

अदालत में क्या हुआ

  • मामले की सुनवाई में दोनों पक्षों ने दलीलें रखीं।
  • अदालत ने पुलिस से रिपोर्ट माँगी थी (थाना न्यू आगरा) लेकिन विपक्षी पक्ष से वह रिपोर्ट नहीं पड़ी थी, इसलिए अदालत ने निर्णय सुरक्षित रखा।
  • सुनवाई के बाद कोर्ट ने 12 नवंबर 2025 को फैसला सुनाने का दिन तय किया है।
  • इस दौरान कंगना अभी तक कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश नहीं हुईं हैं, उन्हें कई समन जारी हो चुके हैं।

क्यों यह मामला विवादित है

  • इस तरह के बयानों से किसानों की भावनाएँ जुड़ी होती हैं — कृषि-समाज, धरना-प्रदर्शन, आंदोलन जैसी स्थितियों में जुड़े लोग इसे बड़ी संवेदनशील विषय मानते हैं।
  • “राष्ट्रद्रोह” का आरोप इसलिए लगाया गया क्योंकि आरोप-वाद में यह दावा है कि उन्होंने देश, किसानों और राष्ट्रपिता-सैनिकों की गरिमा को ठेस पहुँचाई।
  • नोट: अभी तक फैसला नहीं आया है, इसलिए आरोप सिर्फ वादी की ओर से हैं — अदालत ने इसे सही ठहराया या खारिज किया यह आज के फैसले के बाद ही स्पष्ट होगा।

भविष्य में क्या हो सकता है

  • अगर अदालत ने वादी की बात सही पाई, तो कंगना के खिलाफ राष्ट्रद्रोह या अपमानजनक टिप्पणी का मुकदमा आगे चल सकता है।
  • दूसरी ओर, अगर अदालत ने पाया कि बयानों में “राष्ट्रद्रोह” का घटक नहीं है या पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं — तो मामला खारिज हो सकता है।
  • सभी पक्षों के लिए यह पढ़ने-समझने का मौका है कि आंदोलन-प्रदर्शन, अभिव्यक्ति-स्वतंत्रता (freedom of speech) और व्यक्ति-समूह-भावनाएँ (collective sentiments) कैसे संतुलित रहनी चाहिए।

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